Saturday 15 September 2018

वर्तमान राष्ट्रीय मुद्दों को जाने नये अंदाज़ में


वाह भारत! तेरा क्या कहना।  रमजान के महीने में मौलवी जी की माइक पर पुकार पूरी हुई थी कुछ दिन बाद गणों के देवता गणपति का पर्व आ गया। तो गली-गली में गण (लोग) डीजे पर झूम रहे है। गणेश जी के बड़े-बडे़ कानों को गीत सुनाने के लिए सामान्य जनों के छोटे कानों की तो ऐसी-तैसी कर रखी है।

 इस शोर शराबे के बीच माल्या ने धमाकेदार एंट्री की और मीडिया को नया मसाला मिल गया। राजनेताओं की तो बल्ले-बल्ले हो गई चुनावी मौसम में चर्चा का केंद्र बिंदू मिल गया। मजेदार बात भी है विपक्ष की आक्रामकता को सत्तापक्ष के एक सांसद ने ही खुराक दे दी। सत्ता पक्ष बचाव की मुद्रा में है पर तीखे तेवरों के साथ। विरोधियों को आईना दिखाने हेतु मंत्रियों की टीम मैदान में है।

पूरी रस्साकसी की जड़ तो चुनाव है। कौन कहता है चुनावों में ताकत नहीं है एक-दूसरे को सीधी नजर से नहीं देखने वाले आज हाथ मिलाने को मजबूर है। किन्तु मामला अब भी मुश्किल है क्योंकि बुआ-बबुआ की जोड़ी बनती देख नेताजी के परिवार में फूट पड़ गई। देखते-देखते नये मोर्चे का गठन हो गया। वह भी उस प्रदेश में जहां से दिल्ली जाने का रास्ता तय होता है। उधर शाह बाबा को भय है  2019  इलेक्शन हाथों से फिसल गया तो 50 सालों तक हंगामा करने के सिवाय कुछ नहीं बचने वाला है। इसलिए तो चुनावी राज्यों में यात्राओं का दौर जोरो पर है।

सपनोंके पीएम ने संसद में बड़े सरदार को गले लगाकर आंख क्या मार दी। जमाना पीछे ही पड़ गया। अब भाषण की कला में भी पारगंत हो गए है। जनेऊ का प्रदर्शन किया, मंदिरों की यात्रा की। ठेठ मानसरोवर तक पहुंच गये। और तो और तो बाज की भांति माल्या के मुददे को भी झपट लिया। अब तो सपना पूरा होगा ही!

रुपया दिनोंदिन गिर रहा है। ससूरे ने गिरने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। लगता है रुपये ने भांग की गोली ज्यादा ही खा ली है क्योंकि ये गिर के उठ भी नहीं पा रहा है। मंत्री जी के रवैये से तो लगता है, वे भारतीय शास्त्रों में लिखे सूत्र का पालन कर रहे है  "गिरने वाला खुद उठता है"।

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