Tuesday, 19 February 2019

बीमारियों के प्रकोप से बचने के लिए अपनाना होगा आपको ये तरीका

आज का दौर बीमारियों का दौर है। हम रोजाना नई बीमारियों सामना कर रहे हैं। आज कोई ही ऐसा व्यक्ति होगा जो बीमार न होता हो, जो अपने स्वास्थ्य से परेशान न हो। स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि नई पीढ़ी बीमारी में ही पलती है और बीमारी में ही इस दुनिया को देखती है। सवाल यही है कि हमारी इस दुर्दशा का कारण क्या है?  हमारा खानपान या हमारी जीवनशैली।
हम जो सब्जियां खाते है, वो गंदगी में उगाई जाती हैं। उनमें कैमिकल इतना होता है कि जो हमें नुकसान पहुंचाती हैं। अन्न रासायनिक उवर्रकों के प्रयोग से पककर हम तक आता है, गुड़, शक्कर, दूध सहित रसोई में आने वाली हर वस्तु रसायनों, कीटनाशकों से पोषण पाकर हम तक पहुँचती है। इस जहर को हम खाते है , नतीजन हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है और बीमारियों का कहर हम पर टूट पड़ता है। ऐसे में जरूरत है पूरी तरह जैविक उत्पादों की व प्रकृति के अनुकूल जीवनशैली की। ऐसा ही एक प्रयोग उत्तरप्रदेश के बिजनौर जिले में मनोज वर्मा जी कर रहे है।

 बिजनौर  जिले के अफजलगढ़ गांव के वासी मनोज वर्मा वैसे तो व्यापार आभूषणों का करते है, पर जैविक उत्पादों पर वैज्ञानिक की तरह काम करते है। यही वजह है उनका यह कार्य आसपास के ग्रामीणों के लिए एक आदर्श बन चूका है। मनोज जी के घर में प्रवेश करने पर सबसे पहले आपकों दर्शन होंगे गाय के। इनका कहना है कि उनके पूरे ऑर्गेनिक फर्म का आधार ये गाये है। भारतीय नस्ल की इन गायों का जिक्र करते कहते है, भारतीय संस्कृति में गाय को गौमाता कहने के पीछे वैज्ञानिक कारण है, यदि ये गाये रसायनों के प्रयोग से पका चारा खाती है तो दूध में उसका असर नहीं होता है।  बल्कि विदेशी नस्ल के साथ ठीक इसके उलट होता है। देशी गाय के गोमूत्र का प्रयोग कीटनाशक की जगह पर हम करते है। 

मनोज जी के घर के साथ सूर्य की रश्मियों के आकार का एक बेहद आकर्षक उपवन बना है, जहाँ विभिन्न मौसमी सब्जियां, फलों व फूलों की क्यारियां सजी है। गाजर, मूली, धनियां, पालक, गोबी, सेम, टमाटर, आलू, शकरकंद व मटर सहित वे सारी सब्जियां जिनकी पैदावार सर्दियों के मौसम में होती है। चीकू, नारंगी, केला, नींबू आदि के पौधे फलों से लदे हुए है। आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों में तुलसी, एलोवेरा इत्यादि लगी हुई है। सेंगुड़ा जिसकी पैदावार बाहर की दुनिया में समान्यतः गंदे पानी में की जाती है, वो एकदम साफ पानी में लहलहा रहा है। व्यस्थित तरीके से लगे इस उपवन की सबसे खास बात है, यहाँ उपलब्ध सारे फल, फूल व सब्जियां ऑर्गेनिक है। किसी भी तरह के रसायन का प्रयोग नहीं करते है। केवल गोबर व गौमूत्र की सहायता से बेहतरीन पैदावार ले रहे है।

मनोज जी बताते है कि उनका एक नया प्रयोग लकड़ी के बुरादे व जैविक खाद को गमले में डालकर सब्जियाँ उगाने का है जो बिना मिट्टी के सब्जी प्राप्त करने की अनोखी विधि है इसीलिए गमलों में लगे सब्जी के ये पौधे शहरी लोगों के लिए वरदान की भांति है क्योंकि शहरों में जमीन की कमी होती है तो लोग गमलों में अपने परिवार के  लिए पर्याप्त सब्जी का उत्पादन कर सकते है।
गाय के लिए जैविक चारे की व्यवस्था है, ताकि दूध, गोमूत्र, गोबर जैविक रूप में प्राप्त हो सके। रसोई भी पूरी तरह से भारतीयता के रंग में रंगी हुई है, अनाज पीसने हेतु पारम्परिक चक्की, खाना पकाने के लिए गोबर के कंडे, मिट्टी  के बर्तन व चूल्हा उपलब्ध है |


ये प्राणायाम व ध्यान करने के लिए उपवन के बीच बने आसन। यहां बैठकर  प्रणायाम करने से औषधियों की सुंगध शरीर में जाकर स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है।


आपने शास्त्रों में सुना होगा कि धरती से ऊपर पेड़ पर बैठकर साधना करने से अधिक लाभ मिलता है, तो इसका प्रयोगिक रूप इस उद्यान में नीम के वृक्ष पर बनी इस कुटिया से देखा व अनुभव किया जा सकता है।
उपवन में लगे पौधों तक पानी के वितरण की व्यवस्था भी अच्छे से कर रखी है।
इसके साथ ही यहां वातावरण के शोधन के लिए नित्य यज्ञ होता है, जिसमें परिवार के सदस्य वैदिक मंत्रों के माध्यम सबके कल्याण की कामना करते है।

मनोज जी का कहना है कि इस जमीन को ऑर्गेनिक बनाने के लिए उन्होंने तकरीबन 1 साल मेहनत की। इस दौरान सफेद चुना, गोबर व गौमूत्र का इस्तेमाल कर जमीन को जैविक बनाया। जिसके कारण अब क्वालिटी के साथ अच्छी क्वांटिटी में जैविक उत्पाद प्राप्त कर रहे है।

मनोज जी बताते है कि मेरा पूरा परिवार इन ऑर्गेनिक उत्पादों का प्रयोग करता है, इसलिए सभी निरोगी है। मैंनें जो यह ऑर्गेनिक उपवन से लेकर खाने का मॉडल  बनाया यह अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे इसलिए व्यापक स्तर पर उत्पादन की दिशा में कार्य कर रहा हूँ।

यदि आप विस्तार से उपर्युक्त तथ्यों को जानकर इस पर कार्य करने की इच्छा रखते है तो मनोज वर्मा जी से नीचे दिए गए नंबर पर संपर्क कर सकते है-
 9412567916 





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