Monday, 5 November 2018

दीवाली की धूम के बीच हवा व पटाखे के बीच एक रोचक चर्चा

डिसक्लेमर : यह रोचक वार्तालाप हवा और पटाखे के बीच का है। जिसे पढ़ने पर आपको पता चलेगा कि यदि ये दोनों सजीव होते तो बढ़ते वायु प्रदूषण पर आपस में क्या वर्तालाप करते ?



वार्तालाप
हवा : पटाखे! दीवाली आते ही तुम फटना शरू हो जाते हो। चारों तरफ तुम्हारी ही आवाज सुनने को मिलती है।
पटाखा : ये ही तो अपना रुतबा है, गली-मोहल्ले, गाँव-शहर हर जगह मैं अपनी धूम मचाता हूँ।
हवा : एक बात बताओं कि तुम धुंए का इतना धंधुकार क्यों करते हो?
पटाखा : सुन, मेरे धमाके का उत्पाद धुंआ है इस पर तुम अँगुली नहीं उठा सकती हो।
हवा : तुम्हारे इस उत्पाद का खामियाजा मुझे भुगतना पड़ता है, प्रदूषण की बदनामी मेरे नाम के आगे लगती है।
पटाखा : इसमें मेरा क्या दोष है ? मैं खुद से थोड़ा ही फटता हूँ, पैसे देकर लोग मेरी खरीदारी करते है, फिर मुझे फोड़कर दीवाली मनाते है।
हवा : तुम जिस दीवाली की बात कर रहे हो उसमें मेरे पुत्र का बहुत बड़ा योगदान है।
पटाखा : क्या योगदान है ?
हवा : मेरा पुत्र हनुमान ही था, जिसने सीता जी को रावण के चंगुल से  मुक्त कराने में राम के सहयोगी की प्रमुख भूमिका निभाई थी।
पटाखा : इसका दीवाली से क्या मतलब ?
हवा : तुम केवल धमाका ही करते हो, कुछ पता तो  है नहीं तुम्हें।
राम ने सीता जी को रावण से मुक्त कराने तक वापस घर नहीं लौटने की शपथ ली थी। मेरे बेटे हनुमान ने राम जी की इस शपथ को पूरा करवाया।
पटाखा : फिर ?
हवा : इसके बाद रामजी जी जब वापस अयोध्या अपने घर लौटे तो अयोध्यावासियों ने दीपक जलाकर उनका स्वागत किया।
तब से उस दिन पर दीपावली मनाने का सिलसिला शरू हुआ जो आज भी जारी है।
पटाखा : यानि मैं उस दौर में नहीं था।
हवा : बिल्कुल नहीं थे।
मॉर्डन लोगों ने मेरे बेटे का एहसान भुलाकर तुम्हारे माध्यम से मुझे ही प्रदूषित करना शुरू कर दिया। पर इसका दुष्परिणाम , खुद उन्हें ही झेलना होगा।
बेचारा सुप्रीम कोर्ट है जो मेरी शुद्धि के लिए प्रयास करता है।
पटाखा : देखो मैं तुम्हारा  दुःख समझ सकता हूँ पर मेरे वश में कुछ नहीं है।
मेरा एक नया वर्जन है, इकोफ्रेंडली वाला। अगर लोग चाहे तो उसका उपयोग कर सकते है, जिससे धमाका तो होगा पर प्रदूषण नहीं।
हवा : धन्यवाद पटाखा। तूने तो मेरी बात समझ ली पर ये लोग कब समझेंगे जो मुझे प्रदूषित कर अपने ही पाँवो पर कुल्हाड़ी मारते जा रहे है। कभी तुम्हारे माध्यम से तो कभी गाड़ियों के माध्यम से।
पटाखा : ये तो समझदारों की नासमझी है कभी तो इन्हें अकल जरूर आएगी।
हवा : मुझे भी यही आशा है। ठीक है पटाखे अब मैं चलती हूँ वरना लोगों का श्वास लेना मुश्किल हो जाएगा।




8 comments:

  1. Bahut hi Umda....

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    1. धन्यवाद साक्षात्कारकर्ता महोदय

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  2. Bahut badia saral samvad me badi baat

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  3. Replies
    1. धन्यवाद संपादक महोदय

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  4. बहुत ही सुंदर व रोचक कृति

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