उम्र से युवा, समझ पशु जैसी, उद्देश्य एक ही कि किसी तरह नशे का बंदोबस्त हो, अपराधी चलन, बीमारियों का आक्रमण, परिवार परेशान व समाज हैरान कुछ ऐसा हाल आज भारत की अधिकतर युवा आबादी का हो चूका है।
माता-पिता की उम्मीदें होती है कि बेटा बड़ा होकर परिवार का भार कंधो पर लेगा, हमें आराम करने का अवसर देगा, पर बेटा बड़ा होकर उन्हें राहत देने की बजाय और अधिक परेशानी में डाल देता है क्योंकि वह नशे की अंधी दुनिया में धसकर बर्बादी के रास्तों को चुन लेता है।
जब वह नशे की लत का गुलाम बन जाता है तो उसके लिए आजीविका व नशे की आदत की पूर्ति के लिए आवश्यक धन जुटाना मुश्किल हो जाता है। अंत में वह नशे की भूख मिटाने के लिए चोरी, डकेती, गुड़ागर्दी व तमाम आपराधिक गतिविधियां करने को मजबूर होता है। जिसका दुष्परिणाम समूचा समाज झेलता है।
आज-कल तो नशे के नंगे नाच का तांडव इस कदर हो चूका है कि ये नशेड़ी बहन-बेटियों की इज्जत तक लूटने से नहीं डरते।
वर्तमान में भारत में युवाओं की आबादी 70 फीसदी है जो राष्ट्र का नव-निर्माण बड़ी तेज गति से कर सकते है पर इनमें से अधिकतर नशे के आदि हो चुके है, जो राष्ट्र पर बोझ बनने का काम कर रहे है।
इस प्रकार नशे से ग्रसित व्यक्ति व्यक्तिगत स्तर पर बीमारी व दिशाहीनता, पारिवारिक स्तर पर तनाव, सामाजिक अपराध व राष्ट्र के लिए बोझ बनकर सामने आ रहा है।
अब आवश्यकता है इन भटके लोगों को जागरूक कर पुनः सही राह दिखाने की, ताकि नशे के चंगुल से बाहर निकल सके। साथ ही सामाजिक जागरूकता की ताकि नये युवा नशे की दुनिया से अपना नाता न जोड़े।
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