Monday 21 May 2018

सूखे कंठ को मिलता है यहाँ मुफ्त में मीठे पानी का सुकून

आँखों देखा हाल....
रेतीले टीले, कड़ी धूप, बीच से निकलती तपती ट्रेन, जिसमें आप सवार हो, यदि आपको मुफ्त में ठंडा पानी पिला दे तो उस समय वह साक्षात भगवान के समान लगता है।
ऐसा ही अनुभव आपको पश्चिमी राजस्थान की  रेल यात्रा में मिल सकता है। राजस्थान की सीमा शुरू होते ही रेगिस्तानी टीले दिखने  शुरू हो जाते है। इस मौसम यानी गर्मी में लू का भी प्रकोप भी अपनी चर्म सीमा पर रहता है। इसी वजह से  रेल का तापमान भी बढ़ जाता है। कंठ सूख जाता है, ठंडे पानी को जी तरसता है।  इस हालात में रेलवे स्टेशन पर कुछ लोग खासकर माता-बहने मुफ्त में ठंडा पानी पिलाती आसानी से नजर आ सकती है। यात्रियों के लिए वह ठंडा पानी किसी अमृत से कम नहीं होता और पिलाने वाले लोग किसी भगवान से कम नहीं  होते।

उन सेवकों का जीवन सादा होता है, पहनावा स्थानीय राजस्थानी और सुगन्ध भी अपनी संस्कृति की। हाँ, जरूर वे लोग बोतलों में बंद पानी पीने वालो और आधुनिकता के अंधों के लिए अनपढ़ गंवार हो सकते है पर वास्तव में विचारों से महान होते है, जिसकी झलक ऐसे परमार्थ व सेवा कार्यों में दिखती है। वे ही  भारत की सच्ची शान व पहचान है। पर मीडिया के मित्रों के लिए वे कभी हैडलाइन नहीं बनते क्योंकि उनके पास सनसनी नहीं होती है। आप और मेरे जैसे लोगों के लिए वे चर्चा का विषय भी होते है और प्रेरणा का स्रोत भी। कारण जमीनी जुड़ाव हो सकता है या कुछ और भी। जो भी हो ऐसे आँखों देखे नजारों को लिखने हेतु अपनी कलम बैचेन हो जाती है। आराम तभी मिलता है जब आप तक ये सकारात्मक खबरे पहुँच पाती है।

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