प्रसन्नता का पल
आह
! क्या प्रसन्नता का पल था वह। मन में खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। चेहरे
पर मुस्कान स्वतः ही आ रही थी। जीवन का अद्भुत अहसास था। उस पल की छाप अभी
भी वैसी ही है। वह पल था एक ऐसे साथी की मदद करने के बाद का, जिसका दाहिना
हाथ किसी हादसे के कारण काम नहीं कर रहा था और ऊपर से उसके परीक्षा आ गई।
संयोग से मुझे उसकी परीक्षा में लिखने का सौभाग्य मिला। मैं भी खुदा की
कृपा से परीक्षा में लिखने में उसकी उम्मीद के अनुरूप कामयाब हो सका। जिसके
बाद उसे बहुत खुशी मिली। उसकी खुशी से मुझे उस आनंद का अहसास हुआ मानों कि
उसकी खुशी में मेरी प्रसन्न्ता छिपी थी। शायद इसी वजह से कहा जाता है कि
सच्चे दिल से दूसरों की सहायता से जो सुख मिलता है वह कहीं और नहीं।
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