Wednesday, 20 February 2019

दे.सं.वि.वि. की इंटर्नशिप टीम ने मस्जिद में योग के साथ कराई सामूहिक प्रार्थना

देव संस्कृति विश्विद्यालय से एक महीने की सोशल इंटर्नशिप के लिए गए विद्यार्थी अविस्मरणीय अनुभव के साथ वापस लौटे। गुरुसत्ता के आशीष के अनुभूति उनके द्वारा सहज ही जानी जा सकती है। पूर्वोत्तर भारत के असम व अरुणाचल प्रदेश में जाने वाली टोली सदस्य राजू राम, निखिल चौधरी व प्रखर पांडे ने इंटर्नशिप में बेहतरीन काम कर एक मिसाल पेश की। स्थानीय कार्यकर्ता डॉ आर.एन. यादव के मार्गदर्शन में टीम ने योग, बालसंस्कार, दीप यज्ञ, यज्ञ व व्यक्तित्व परिष्कार कार्यशाला का आयोजन किया।


गायत्री प्रज्ञापीठ जागुन में बालसंस्कार शाला में विद्यार्थियों की संख्या 3 शुरू से होकर 56  तक पहुँची। सबसे खास बात इसमें हिन्दूओं के आलावा मुस्लिम व ईसाई परिवार के बच्चे भी शामिल थे। टीम ने असम के लेखापानी में राजपुताना रायफल्स नवीं बटालियन के जवानों व अधिकारियों की 11 दिनों तक योग, ध्यान, प्राणायाम की कक्षा ली। जिससे प्रभावित होकर बटालियन के कर्नल मुकेश पांडे जी ने स्थानीय विद्यार्थियों को दे.सं.वि.वि. में पढ़ाने के लिए फीस व अन्य आवश्यक खर्च  वहन करने का वादा किया। साथ ही विश्वविद्यालय के बीएड में अध्ययनरत जागुन की एक छात्रा को 10 हजार रूपये की आर्थिक सहायता प्रदान की। कर्नल पांडे जी ने गायत्री परिवार के असम में शिक्षा व स्वास्थ्य आंदोलन को गति देने के लिए 5 लाख की वित्तिय सहायता का प्रस्ताव भी दिया।

इंटर्नशिप टीम ने जागुन क्षेत्र की जामा मस्जिद में 9 दिवसीय योग शिविर लगाकर प्रज्ञा योग व सूक्ष्म व्यायामों द्वारा स्वस्थ रहने के गुर सिखाए। मस्जिद के कार्यक्रम के समापन पर आयोजित सामूहिक प्रार्थना में सत्प्रवृत्ति सवंर्धन व दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन के तहत मुस्लिम बंधुओं को संकल्प कराया। टीम ने अरुणाचल प्रदेश के जयरामपुर में स्थित असम रायफल्स 13 वीं बटालियन में चार दिवसीय योग, एक्युप्रेशर व मर्म चिकित्सा का शिविर लगाया। जिसका लाभ बटालियन के जवानों, अधिकारियों व उनके परिवारों ने लिया। इस दौरान असम रायफल्स स्कूल के विद्यार्थियों को व्यक्तित्व विकास के सूत्र देकर प्रज्ञा योग सिखाया।

स्कूलों में आयोजित कार्यक्रमों में योग, आदर्श दिनचर्या, उचित खानपान व व्यक्तित्व विकास के साथ गायत्री मंत्र का आध्यात्मिक व वैज्ञानिक लाभ विद्यार्थियों तक पहूंचाया। साथ ही विद्यार्थियों को देव संस्कृति विश्वविद्यालय में पढ़ने का आमंत्रण भी दिया। टीम ने किड्जी स्कूल व केंद्रीय विद्यालय लेखापानी के पुस्तकालय में अखण्ड ज्योति को सब्सक्राइब भी कराया। विद्यालयों के स्टाफ को तनाव प्रबंधन व समय प्रबंधन के सूत्र दिए।इस प्रकार एक महीने की परिवीक्षा काल में विद्यार्थियों ने समूचे क्षेत्र को देव संस्कृतिमय बना दिया।

टीम के सदस्यों के अनुसार परिवीक्षाकाल में बड़े-बड़े कार्य करने के लिए वे केवल एक कदमभर बढ़ाते थे, बचा कार्य बड़ी आसानी से हो जाता। जिससे गुरुसत्ता के प्रत्यक्ष आशीष का आभास होता था।

Tuesday, 19 February 2019

बीमारियों के प्रकोप से बचने के लिए अपनाना होगा आपको ये तरीका

आज का दौर बीमारियों का दौर है। हम रोजाना नई बीमारियों सामना कर रहे हैं। आज कोई ही ऐसा व्यक्ति होगा जो बीमार न होता हो, जो अपने स्वास्थ्य से परेशान न हो। स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि नई पीढ़ी बीमारी में ही पलती है और बीमारी में ही इस दुनिया को देखती है। सवाल यही है कि हमारी इस दुर्दशा का कारण क्या है?  हमारा खानपान या हमारी जीवनशैली।
हम जो सब्जियां खाते है, वो गंदगी में उगाई जाती हैं। उनमें कैमिकल इतना होता है कि जो हमें नुकसान पहुंचाती हैं। अन्न रासायनिक उवर्रकों के प्रयोग से पककर हम तक आता है, गुड़, शक्कर, दूध सहित रसोई में आने वाली हर वस्तु रसायनों, कीटनाशकों से पोषण पाकर हम तक पहुँचती है। इस जहर को हम खाते है , नतीजन हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है और बीमारियों का कहर हम पर टूट पड़ता है। ऐसे में जरूरत है पूरी तरह जैविक उत्पादों की व प्रकृति के अनुकूल जीवनशैली की। ऐसा ही एक प्रयोग उत्तरप्रदेश के बिजनौर जिले में मनोज वर्मा जी कर रहे है।

 बिजनौर  जिले के अफजलगढ़ गांव के वासी मनोज वर्मा वैसे तो व्यापार आभूषणों का करते है, पर जैविक उत्पादों पर वैज्ञानिक की तरह काम करते है। यही वजह है उनका यह कार्य आसपास के ग्रामीणों के लिए एक आदर्श बन चूका है। मनोज जी के घर में प्रवेश करने पर सबसे पहले आपकों दर्शन होंगे गाय के। इनका कहना है कि उनके पूरे ऑर्गेनिक फर्म का आधार ये गाये है। भारतीय नस्ल की इन गायों का जिक्र करते कहते है, भारतीय संस्कृति में गाय को गौमाता कहने के पीछे वैज्ञानिक कारण है, यदि ये गाये रसायनों के प्रयोग से पका चारा खाती है तो दूध में उसका असर नहीं होता है।  बल्कि विदेशी नस्ल के साथ ठीक इसके उलट होता है। देशी गाय के गोमूत्र का प्रयोग कीटनाशक की जगह पर हम करते है। 

मनोज जी के घर के साथ सूर्य की रश्मियों के आकार का एक बेहद आकर्षक उपवन बना है, जहाँ विभिन्न मौसमी सब्जियां, फलों व फूलों की क्यारियां सजी है। गाजर, मूली, धनियां, पालक, गोबी, सेम, टमाटर, आलू, शकरकंद व मटर सहित वे सारी सब्जियां जिनकी पैदावार सर्दियों के मौसम में होती है। चीकू, नारंगी, केला, नींबू आदि के पौधे फलों से लदे हुए है। आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों में तुलसी, एलोवेरा इत्यादि लगी हुई है। सेंगुड़ा जिसकी पैदावार बाहर की दुनिया में समान्यतः गंदे पानी में की जाती है, वो एकदम साफ पानी में लहलहा रहा है। व्यस्थित तरीके से लगे इस उपवन की सबसे खास बात है, यहाँ उपलब्ध सारे फल, फूल व सब्जियां ऑर्गेनिक है। किसी भी तरह के रसायन का प्रयोग नहीं करते है। केवल गोबर व गौमूत्र की सहायता से बेहतरीन पैदावार ले रहे है।

मनोज जी बताते है कि उनका एक नया प्रयोग लकड़ी के बुरादे व जैविक खाद को गमले में डालकर सब्जियाँ उगाने का है जो बिना मिट्टी के सब्जी प्राप्त करने की अनोखी विधि है इसीलिए गमलों में लगे सब्जी के ये पौधे शहरी लोगों के लिए वरदान की भांति है क्योंकि शहरों में जमीन की कमी होती है तो लोग गमलों में अपने परिवार के  लिए पर्याप्त सब्जी का उत्पादन कर सकते है।
गाय के लिए जैविक चारे की व्यवस्था है, ताकि दूध, गोमूत्र, गोबर जैविक रूप में प्राप्त हो सके। रसोई भी पूरी तरह से भारतीयता के रंग में रंगी हुई है, अनाज पीसने हेतु पारम्परिक चक्की, खाना पकाने के लिए गोबर के कंडे, मिट्टी  के बर्तन व चूल्हा उपलब्ध है |


ये प्राणायाम व ध्यान करने के लिए उपवन के बीच बने आसन। यहां बैठकर  प्रणायाम करने से औषधियों की सुंगध शरीर में जाकर स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है।


आपने शास्त्रों में सुना होगा कि धरती से ऊपर पेड़ पर बैठकर साधना करने से अधिक लाभ मिलता है, तो इसका प्रयोगिक रूप इस उद्यान में नीम के वृक्ष पर बनी इस कुटिया से देखा व अनुभव किया जा सकता है।
उपवन में लगे पौधों तक पानी के वितरण की व्यवस्था भी अच्छे से कर रखी है।
इसके साथ ही यहां वातावरण के शोधन के लिए नित्य यज्ञ होता है, जिसमें परिवार के सदस्य वैदिक मंत्रों के माध्यम सबके कल्याण की कामना करते है।

मनोज जी का कहना है कि इस जमीन को ऑर्गेनिक बनाने के लिए उन्होंने तकरीबन 1 साल मेहनत की। इस दौरान सफेद चुना, गोबर व गौमूत्र का इस्तेमाल कर जमीन को जैविक बनाया। जिसके कारण अब क्वालिटी के साथ अच्छी क्वांटिटी में जैविक उत्पाद प्राप्त कर रहे है।

मनोज जी बताते है कि मेरा पूरा परिवार इन ऑर्गेनिक उत्पादों का प्रयोग करता है, इसलिए सभी निरोगी है। मैंनें जो यह ऑर्गेनिक उपवन से लेकर खाने का मॉडल  बनाया यह अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे इसलिए व्यापक स्तर पर उत्पादन की दिशा में कार्य कर रहा हूँ।

यदि आप विस्तार से उपर्युक्त तथ्यों को जानकर इस पर कार्य करने की इच्छा रखते है तो मनोज वर्मा जी से नीचे दिए गए नंबर पर संपर्क कर सकते है-
 9412567916