Thursday, 4 January 2018

सर्दी से सहमे दिल से निकली ये पंक्तियां-

दिल लगा है फड़कने


हरिद्वार के है ऐसे हाल
बन गया हूँ गुदड़ी लाल
चल पड़ी है शीतलहर
हो भलें रात या दोपहर
जारी है इसका कहर

थमने लगी है धड़कने
दिल लगा है फड़कने
अब बिना वस्त्र ताप
लग सकता है श्राप
नाक के बहने का
बंद कमरे में रहने का

ऐसे ठिठुरते हाला में
सवेरे -सवेरे यज्ञशाला में
मिल सकता है आशीष
पर होनी चाहिए कोशिश

वह बिस्तरों को छोड़कर
आलस्य से मुंह मोड़कर
पहली ये सफलता पानी है
फिर तो जोर जवानी है।

                   - राजू राम

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