Wednesday 14 November 2018

डॉ चिन्मय पंड्या का जीवन परिचय


डॉ चिन्मय पंड्या नाम सुनते ही मन में एक आदर्श युवा की छवि उभरती है, एक ऐसा युवा जो ब्रिटेन जैसे शाही देश में  डॉक्टर की सर्विस त्यागकर अपनी मातृभूमि की सेवा के भाव से पुनः देश लौटे। 2010 से लगातार देव संस्कृति विश्वविद्यालय में प्रतिकुलपति के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे है, साथ-साथ राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय स्तर की कई नामी सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभा रहे है।

वर्त्तमान में डॉ पंड्या अध्यात्म के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर नोबेल पुरस्कार के समकक्ष टेम्पल्टन पुरस्कार की ज्यूरी के मेंबर भी है, जो कि समूचे भारतवर्ष के लिए गर्व और गौरव की बात है क्योंकि पहले भारतीय है जो इस पुरस्कार की चयन समिति के सदस्य है। अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ प्रणव पंड्या जी इनके पिता हैं। करोड़ों गायत्री परिजनों के आस्था के केंद्र युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ  पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी व माता भगवती देवी शर्मा की गोदी में खेलने का सौभाग्य बचपन में इन्हें प्राप्त हुआ।

 करिश्माई व्यक्तित्व के धनी डॉ पंड्या भारतीय संस्कृति को वर्तमान की तमाम समस्याओं के समाधान के रूप में देखते है। इनके ओजस्वी भाषण सुनने को हर कोई लालायित रहता है। यह अपने धाराप्रवाह उद्बोधन से श्रोताओं को भीतर से झकझोरकर सकारात्मक दिशा में सोचने को मजबूर कर देते है। भारतीय वेशभूषा धोती-कुर्ते  व खड़ाऊ धारण किये डॉ पंड्या बेहद विनम्र स्वभाव के धनी है।

देव संस्कृति विश्वविद्यालय को परिवार की भांति संचालित करके डॉ पंड्या प्रतिकुलपति  के साथ अभिभावक की भूमिका का निर्वहन कर रहे है। इसी का नतीज़ा है कि विद्यार्थी प्यार से इन्हें भैया भी कहते है। यहाँ अध्ययनरत हो या पुराना कोई भी विद्यार्थी सहजतापूर्वक इनसे मिल सकता है। नित्य नये प्रयोग करने का स्वभाव  इनके व्यक्तित्व में चार चांद लगाता है।

बेहद कम समय में डॉ पंड्या ने काफी ऊँचे मुकाम हासिल किये है।
संयुक्त राष्ट्र संगठन यूएनओ द्वारा विश्व शांति के लिए गठित अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक आध्यात्मिक मंच के निदेशक के साथ ही इंडियन काउंसिल ऑफ कल्चरल रिलेशन के परिषद् सदस्य जैसे महत्वपूर्ण दायित्व निभा रहे हैं।

बीते साल ब्रिटेन रॉयल मेथोडिस्ट हॉल में फेथ इन लीडरशिप संस्थान द्वारा विभिन्न धर्मों के आपसी सद्भाव विषय पर डॉ पंड्या ने अपने विचार रखे, जिसमें प्रिंस चार्ल्स, कैंटरबरी के आर्कबिशप, यहूदियों के मुख्य आचार्य, ब्रिटेन के गृहमंत्री एवं प्रधानमंत्री कार्यालय के समस्त पदाधिकारी उपस्थित थे। डॉ पंड्या के विचार से प्रभावित होकर उन्हें दूसरे दिन हाउस ऑफ लॉर्डस में अपने विचार व्यक्त करने को आमंत्रित किया गया।

डॉ पंड्या ने दो साल पूर्व इथोपिया में आयोजित यूनेस्को के सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। नतीज़न योग को वैश्विक धरोहर का दर्जा मिला। इसी साल वियना में हुए संयुक्त राष्ट्र धर्म सम्मेलन में डॉ पंड्या ने भारत का प्रतिनिधित्व किया। उनके वक्तव्य से प्रभावित होकर पाकिस्तानी धर्म गुरुओं ने उन्हें पाकिस्तान आने का न्यौता दिया।
ऐसी उपलब्धियों की फेहरिस्त बहुत लंबी है, जो उनके प्रखर व्यक्तित्व की वैश्विक छाप को दर्शाती है। इनकी अब तक की जीवन यात्रा को देखकर लगता है आने वाले दिनों में ये कामयाबी कई बड़े कीर्तिमान स्थापित करने वाले है।

Monday 5 November 2018

दीवाली की धूम के बीच हवा व पटाखे के बीच एक रोचक चर्चा

डिसक्लेमर : यह रोचक वार्तालाप हवा और पटाखे के बीच का है। जिसे पढ़ने पर आपको पता चलेगा कि यदि ये दोनों सजीव होते तो बढ़ते वायु प्रदूषण पर आपस में क्या वर्तालाप करते ?



वार्तालाप
हवा : पटाखे! दीवाली आते ही तुम फटना शरू हो जाते हो। चारों तरफ तुम्हारी ही आवाज सुनने को मिलती है।
पटाखा : ये ही तो अपना रुतबा है, गली-मोहल्ले, गाँव-शहर हर जगह मैं अपनी धूम मचाता हूँ।
हवा : एक बात बताओं कि तुम धुंए का इतना धंधुकार क्यों करते हो?
पटाखा : सुन, मेरे धमाके का उत्पाद धुंआ है इस पर तुम अँगुली नहीं उठा सकती हो।
हवा : तुम्हारे इस उत्पाद का खामियाजा मुझे भुगतना पड़ता है, प्रदूषण की बदनामी मेरे नाम के आगे लगती है।
पटाखा : इसमें मेरा क्या दोष है ? मैं खुद से थोड़ा ही फटता हूँ, पैसे देकर लोग मेरी खरीदारी करते है, फिर मुझे फोड़कर दीवाली मनाते है।
हवा : तुम जिस दीवाली की बात कर रहे हो उसमें मेरे पुत्र का बहुत बड़ा योगदान है।
पटाखा : क्या योगदान है ?
हवा : मेरा पुत्र हनुमान ही था, जिसने सीता जी को रावण के चंगुल से  मुक्त कराने में राम के सहयोगी की प्रमुख भूमिका निभाई थी।
पटाखा : इसका दीवाली से क्या मतलब ?
हवा : तुम केवल धमाका ही करते हो, कुछ पता तो  है नहीं तुम्हें।
राम ने सीता जी को रावण से मुक्त कराने तक वापस घर नहीं लौटने की शपथ ली थी। मेरे बेटे हनुमान ने राम जी की इस शपथ को पूरा करवाया।
पटाखा : फिर ?
हवा : इसके बाद रामजी जी जब वापस अयोध्या अपने घर लौटे तो अयोध्यावासियों ने दीपक जलाकर उनका स्वागत किया।
तब से उस दिन पर दीपावली मनाने का सिलसिला शरू हुआ जो आज भी जारी है।
पटाखा : यानि मैं उस दौर में नहीं था।
हवा : बिल्कुल नहीं थे।
मॉर्डन लोगों ने मेरे बेटे का एहसान भुलाकर तुम्हारे माध्यम से मुझे ही प्रदूषित करना शुरू कर दिया। पर इसका दुष्परिणाम , खुद उन्हें ही झेलना होगा।
बेचारा सुप्रीम कोर्ट है जो मेरी शुद्धि के लिए प्रयास करता है।
पटाखा : देखो मैं तुम्हारा  दुःख समझ सकता हूँ पर मेरे वश में कुछ नहीं है।
मेरा एक नया वर्जन है, इकोफ्रेंडली वाला। अगर लोग चाहे तो उसका उपयोग कर सकते है, जिससे धमाका तो होगा पर प्रदूषण नहीं।
हवा : धन्यवाद पटाखा। तूने तो मेरी बात समझ ली पर ये लोग कब समझेंगे जो मुझे प्रदूषित कर अपने ही पाँवो पर कुल्हाड़ी मारते जा रहे है। कभी तुम्हारे माध्यम से तो कभी गाड़ियों के माध्यम से।
पटाखा : ये तो समझदारों की नासमझी है कभी तो इन्हें अकल जरूर आएगी।
हवा : मुझे भी यही आशा है। ठीक है पटाखे अब मैं चलती हूँ वरना लोगों का श्वास लेना मुश्किल हो जाएगा।