इससे मेरे मन में
विचार आया कि यदि राजतंत्र यानी सरकार व धर्मतंत्र मिलकर कार्य करे तो देश
का विकास और अधिक रफ्तार से हो सकता है। क्योंकि राजतंत्र के पास आर्थिक
शक्ति होती है, वहीं धर्मतंत्र के पास नैतिक सामर्थ्य होता है। सरकार की
प्रशासनिक पकड़ मजबूत होती है वहीं धार्मिक संगठनों की जनपकड़ अच्छी होती है,
समाज की अंतिम पक्ति का तबका सरकार की नहीं बल्कि धर्म गुरुओं की शरण में
जाना पंसद करता है। इसलिये दोनों तंत्रों का मिलकर काम करना जरूरी है।
दुर्भाग्य से आज के हालात बहुत दयनीय है। क्योंकि एक तरफ राजनेताओं में नैतिकता का पतन हो रहा है, जिसका दुष्प्रभाव भ्र्ष्टाचार, साम्प्रदायिक तनाव व बेतुकी बयानबाजी के रूप में देखा जा सकता है। वहीं दूसरी ओर धर्मतंत्र से आसाराम, राम रहीम व रामपाल जैसे पाखण्डी लोग पकड़े जा रहे है, जिसका परिणाम लोगों की धर्म के प्रति घटती आस्था के रूप में देखा जा सकता है।
हाल
ही में राम रहीम की काली करतूतों पर हरियाणा सरकार ने पर्दा डालने का
पुरजोर प्रयास किया पर कोर्ट की सख्ती के चलते सरकार के मंसूबे पूरे नहीं
हुए। यहां राजतंत्र का दायित्व बाबा को उनके पाखण्ड की सजा दिलाने का था न
की अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेकने का। दूसरी तरफ कई धर्म गुरु भी स्वार्थ में
आकर उन नेताओं का समर्थन कर बैठते है, जो देश के लिए घातक सिद्ध होते है।
यह नेता भड़काऊ बयानबाजी कर समाज को बांटते है।
भारत
का इतिहास इस बात गवाह है कि एक सफल राजतंत्र के पीछे हमेशा धर्म तंत्र का
हाथ रहा है चाहे वह कृष्ण के साथ उनके गुरु उपमन्यु का हो या राम के साथ महर्षि वशिष्ठ का हो या फिर चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ चाणक्य का हो। अब बदली परिस्तिथियों में भले ही
पूरानी तरह आपसी समन्वय न हो पर राष्ट्रहित के लिए दोनों तंत्र एक-दूसरे का
सहयोग कर सकते है।
आज राजनीति को नैतिकता की जरूरत है, जिसकी
पूर्ति धर्म से हो सकती है। वहीं धर्म को को मोक्ष की राह देखने वाले
लोगों की तलाश है। और यह तलाश ईमानदार राजनेता पूरी कर सकते है। क्योंकि
अधिकतर लोगों को दो जून की रोटी मुश्किल से मिलती है, यदि वो आसानी से मिल
जाए तो वे मोक्ष के बारे में सोचे। जिनकी सहायता ईमानदार राजसेवक कर सकते
है।
अतः दोनों मिलकर कार्य करे तो भारत की तमाम समस्याओं का समाधान हो सकता है। और भारत पुनः जगतगुरु बन सकता है।
इन
सब के बीच एक बात ध्यान रहे है कि मैंने उन धार्मिक संगठनों की बात की है
जो मानवता के धर्म को प्राथमिकता देते है, जो विविधता में एकता की संस्कृति
का संरक्षण करते है, जो मंदिर-मस्जिद पर झगड़ने की बजाय लोगों के दिलों को
मंदिर बनाने का कार्य करते हो, जिनका लक्ष्य राष्ट्र के नवनिर्माण का हो।
और ऐसे संगठनों की पहचान किसी से छीपी नहीं है उदाहरण के तौर पर गायत्री
परिवार को देखा जा सकता है, जो सप्त आंदोलन के जरिये निस्वार्थ भाव से
राष्ट्र की सेवा कर रहा है।