Sunday, 26 November 2017
Saturday, 18 November 2017
Thursday, 16 November 2017
यथा दृष्टि तथा सृष्टि
एक मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा था। निर्माण में लगे तीन मजदूरों को काम करता देख निकट रास्ते से गुजर रहे एक बुद्धिमान शख्स ने उनसे पूछा कि भाई साहब जी क्या कर रहे हो ? जवाब में पहले मजदूर ने कहा अरे क्या बताऊँ, सुबह से इन पत्थरों से माथापच्ची कर रहा हूँ। दूसरे ने कहा कि मेहनत करके कुछ धन अर्जित कर रहा हूँ ताकि मैं अपना व परिवार का गुजारा चला संकू। तीसरे ने बताया मैं भगवान का घर बना रहा हूँ। जिसमें लोग बड़ी श्रद्धा से आकर मथा टेकेंगे।
इस कहानी में जीवन का गहरा मर्म छिपा है। यदि इसे समझ लिया जाए तो जीवन का अर्थ समझ में आ जाता है। साथ ही जीवन जीने की कला में भी निपुण बना जा सकता है।
कहानी में तीनों मजदूर कार्य एक ही कर रहे थे। मगर फिर भी उसमें बहुत बड़ी भिन्नता थी। वह भिन्नता थी- उनके भावों की, उनके नजरिये की, उनके कार्य के प्रति दृष्टिकोण की। इस दुनिया में हर कोई कुछ न कुछ करता रहता है। उनके कार्य भी एक जैसे होते है। पर हर किसी का दृष्टिकोण अपना होता है। जो उन्हें अन्य लोगों से अलग बनाता है।
यदि आप अपने चारों तरफ नजर दौड़ाते है तो सामान्यतः दो प्रकार के लोग देखने को मिलेंगे। एक सकारात्मक सोच वाले व दूसरे नकारात्मक सोच वाले।
सकारात्मक सोच वाले लोगों में एक प्रमुख और आम विशेषता होती है कि उनका दुनिया को देखने का नजरिया सकारात्मक होता है, वे लोग गुणग्राही प्रकृति के होते है। वे किसी भी घटना या वस्तु के सकारात्मक पक्ष को देखकर प्रसन्न रहते हैं। यदि उसमें कुछ नकारात्मक पक्ष हैं तो उसमें सुधारकर आगे बढ़ने में वे विश्वास रखते हैं। जितने भी महापुरूष हुए हैं। उनके जीवन पर नजर डाली जाए तो यही बात निकलकर सामने आती है कि उनका दुनिया के प्रति नजरिया निराला था।
दूसरे लोग होते हैं नकारात्मक सोच वाले। उनका दृष्टिकोण नकारात्मक होता है। वे संसार की आदर्श से आदर्श वस्तु में भी कमी निकालने की जुगत में रहते हैं। यहां तक कि ईश्वर जिसे दोषरहित माना जाता है, उसमें भी कमी निकाल सकते हैं। ऐसे लोग किसी भी तरीके से नकारात्मक भाव को गृहण कर उसी में समय की बर्बादी करते है। उनकी एक आम विशेषता होती है- उनका निराशापूर्ण जीवन। उनमें जीवन के किसी भी कोने में आशा नहीं रहती है। उनके जीवन के पहिये प्रगति की बजाय दूर्गति की और बढ़ते हैं।
यदि आप ऐसा सुने कि कोई विशेष व्यक्ति सुसभ्य, सुसंस्कृत व अन्य लोगों के लिए आदर्श है। तो आप समझ लेना उस व्यक्ति का दृष्टिकोण आदर्श है। स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, भगतसिंह व एपीजे अब्दुल कलाम जैसे महापुरूषों का नाम सुना ही होगा। वे महापुरूष इसलिए कहलाए क्योंकि उनका दुनिया को देखने का नजरिया भिन्न था।
तो अब देखिए आपका दुनिया को लेकर क्या नजरिया है ? अपने जीवन के प्रति क्या दृष्टिकोण है ? उम्मीद है सकारात्मक होगा। लेकिन परख जरूर लीजिए। यदि लगे कहीं नकारात्मक का विष आपके नजरिए में घुला है। तो सजग हो जाइए क्योंकि इसी वजह से आप अपने साथियों से पिछड़ रहे हो। आप इस बात को पहले ही समझ चुके है कि ’यथा दृष्टि तथा सृष्टि’। इसलिए अपने नजरिए में सकारात्मकता की सुगंध का प्रसार कर जीवन का रास्ता सुगम बनाइए। और सुखमय जीवन जीने का आनन्द उठाईए।
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